रह्माजी विचार कर ही रहे थे कि उसी क्षण सभी ग्वाल बाल और गाय बछड़े श्रीकृष्ण रूप में दिखाई देने लगे। सब के सब चतुर्भुज रूप में दिखाई देने लगे। इस प्रकार ब्रह्माजी ने सबको परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण के ही स्वरूप में देखा।
एक दिन भगवान श्रीकृष्ण और ग्वाल बाल गाय बछड़ों को चराने वन में गये। लीलाएं और क्रीडाएं करते बहुत दिन चढ़ गया। उन सब ग्वाल बालों ने गोला सा बनाया और बैठ गये और बीच में श्रीकृष्ण को बैठा कर भोजन करना शुरू कर दिया। गाय बछड़े हरी भरी घास चरते हुए दूर निकल गये। ब्रह्माजी आकाश में पहले से ही उपस्थित थे। उन्होंने सोचा कि भगवान श्रीकृष्ण की मनोहर लीला देखनी चाहिए। ब्रह्माजी ने गाय बछड़ों को ले जाकर एक गुप्त स्थान पर छिपा दिया। जब भगवान ने गाय बछड़ों को वहां नहीं पाया तो ग्वाल बालों को वहीं पर छोड़कर स्वयं ढूंढने के लिए निकले।
रीकृष्ण के चले जाने पर ब्रह्माजी ने ग्वाल बालों को भी उसी स्थान पर छिपा दिया जहां पर गाय बछड़ों को छिपा कर रखा था। भगवान श्रीकृष्ण गाय बछड़े न मिलने पर यमुना जी के तट पर लौट आये। परंतु वहां पर उन्हें ग्वाल बाल भी नहीं दिखाई दिये। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें चारों ओर ढूंढा परंतु वे कहीं नहीं दिखाई दिये।