नैमिषारण्य के बारे में लोगों का सबसे पहले इस बात से साक्षात्कार होता है कि यह अट्ठासी हजार ऋषियों की तपोस्थली थी। उनके मन में कौतूहल उठता है कि जंगल के एक छोटे से भाग में ऐसी क्या खास बात होगी कि एक-दो नहीं, बल्कि हजारों-हजार ऋषियों ने तप के लिए इसी स्थान को चुना। इस एक सवाल का पीछा करते हुए हम पौराणिक इतिहास के उन दरवाजों तक जा पहुंचते हैं जिनके रोशनदानों से सनातन धर्म की उत्पत्ति के निशान देखे जा सकते हैं। हम पाते हैं कि यह स्थल हिंदू धर्म की हर प्रचलित कथा, हर दर्शन से किसी न किसी तरह आबद्ध है। सृष्टि के प्रथम पुरुष मनु की साधना से लेकर व्यास की वेद रचना तक का गवाह रहा है नैमिष। अब यह भी विचित्र संयोग ही है कि लखनऊ से नैमिष की दूरी 55 मील यानी करीब 88 किलोमीटर है।
नैमिषारण्य के माहात्म्य की चर्चा करते हुए तुलसीदास ने रामचरित मानस के बालकांड में कहा है, तीरथवर नैमिष विख्याता, अति पुनीत साधक सिद्धिदाता। पुराणों में गोमती तट पर बसी इस धर्मनगरी का जिक्र सतयुग से ही है। इस धर्मनगरी में ही सृष्टि के प्रथम पुरुष मनु व सतरूपा ने साधना की। यहीं पर महर्षि वेदव्यास ने वेदों व पुराणों की रचना की। सृष्टि के सृजन के बाद की तमाम अनूठी गाथाओं को सहेजे यह धर्मनगरी इन दिनों पर्यटकों को भी खूब भाती है। यही वजह है कि नैमिषारण्य भी बदल रहा है। पिछले कुछ वर्षों में यहां भी पर्यटकों के लिए तमाम सुविधाएं बढ़ी हैं। होटल और अत्याधुनिक सुविधाओं वाली धर्मशालाओं के साथ ही सुधरी रोड कनेक्टिविटी ने भी लोगों का ध्यान नैमिषारण्य की ओर खींचा है।
मिषारण्य का मुख्य तीर्थ है हृदय स्थल पर बना सरोवर चक्रतीर्थ। इस चक्रतीर्थ से निरंतर जल निकलता रहता है। पौराणिक मान्यता है कि ऋषियों के आग्रह पर ब्रह्माजी के मन से उत्पन्न हुए चक्र का मध्य भाग यहीं पर गिरा था। इसे धरती का सबसे पवित्र भाग बताया गया है।
मां ललिता देवी मंदिर नैमिषारण्य का सबसे प्रमुख और पौराणिक मंदिर है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि जब देवी सती ने दक्ष यज्ञ के बाद आत्मदाह किया तो भगवान शिव ने उनके शरीर को कंधे पर रख लिया। इससे सृष्टि प्रभावित हुई। इस पर भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 108 भागों में विभाजित किया। पौराणिक मान्यता है कि सती का हृदय नैमिषारण्य में गिरा। यह स्थल मां ललिता देवी शक्ति पीठ के रूप में विख्यात है।
हनुमान गढ़ी
इस स्थल पर हनुमानजी की स्वयंभू प्रतिमा स्थापित है। मान्यता है कि त्रेता युग में अहिरावण का वध करने के बाद हनुमानजी इसी स्थान पर धरती से बाहर आए थे। इस दक्षिणमुखी प्रतिमा का पूजन-अर्चन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। इस स्थल को हनुमान गढ़ी के नाम से भी जाना जाता है।
मनु सतरूपा मंदिर
सृष्टि के प्रथम पुरुष राजा मनु और रानी सतरूपा ने नैमिषारण्य की पौराणिक भूमि पर ही तप किया था। उनकी तपोस्थली पर ही मनु सतरूपा मंदिर स्थापित है। यहां पर राजा मनु और रानी सतरूपा की मूर्तियां स्थापित हैं।
व्यास गद्दी
यह स्थल भी इस आध्यात्मिक नगरी की पहचान है। इसी स्थल पर महर्षि वेदव्यास ने चार वेदों, छह शास्त्रों और 18 पुराणों की रचना की थी। इस स्थल का आकार एकदम पिरामिड के जैसा दिखता है।
अक्षय वट
व्यास गद्दी के पास ही अक्षय वट भी स्थित है। मान्यता है कि अक्षय वट करीब साढ़े पांच हजार वर्ष पुराना है। इस अक्षय वट के नीचे ही महर्षि वेदव्यास के शिष्य महर्षि जैमिनी ने वर्षों तपस्या की। यहां आने वाले श्रद्धालु इस अक्षय वट का भी परिक्रमा करते हैं।
सूत गद्दी
सूत गद्दी भी इस नगरी की आध्यमिकता की गवाह है। मान्यता है कि यहीं पर सबसे पहले महामुनि सूत ने श्रीमद्भागवत कथा, स्वामी सत्य नारायण व्रत कथा तथा महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित वेद, पुराणों और उपनिषदों का ज्ञान 88 हजार ऋषियों को दिया था।
त्रिशक्ति धाम
आंध्रा आश्रम के गरिमुल्ला वेंकटरमन शास्त्री के देश भर में बने 246 मंदिरों में यह 242वां मंदिर है। यहां पर भगवान शिव, भगवान विष्णु के साथ ही जगतजननी मां की भी विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। भगवान विष्णु की 52 फीट और मां की 42 फीट ऊंची प्रतिमाएं दिव्यता का अहसास कराती हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल : नारदानंद आश्रम, पांडव किला, रुद्रावर्त, काली शक्तिपीठ व महर्षि दधीचि की तपोस्थली मिश्रिख।
ठहरने की सुविधा: धर्मशाला, होटल के अलावा विभिन्न आश्रमों में भी कमरे बने हैं।
किराया-
- धर्मशाला : 200 से 500 रुपये प्रति कमरा।
- होटल : 1500 से 4500 रुपये प्रति कमरा।
खानपान : होटलों के रेस्टोरेंट में सुविधा है।
लखनऊ से दूरी : 88 किमी.
बस सुविधा : सुबह छह से शाम सात बजे तक कैसरबाग बस स्टॉप से हर घंटे नैमिषारण्य के लिए बस चलती है।
रेल सुविधा : सीतापुर और हरदोई के बालामऊ से ही उपलब्ध है।
लोकल कन्वेंस : ई-रिक्शा व प्राइवेट टैक्सियां प्रमुख धार्मिक स्थलों का दर्शन कराने के लिए 100 रुपये प्रति यात्री लेती हैं।