बच्चो के जीवन में शिक्षा की एक अलग भूमिका


 शिक्षा का उद्देश्य केवल परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करना नहीं होता है, बल्कि शिक्षा के माध्यम से नई चीजों को सीखने के साथ अपने ज्ञान में वृद्धि की जा सकती है।, बच्चे हमारे देश का भविष्य हैं, इसलिए हमें उन्हें अच्छी नैतिकता और बेहतर तरीके से शिक्षा ग्रहण करने पर जोर देना चाहिए, ताकि वे भविष्य में एक जिम्मेदार व्यक्ति बन सकें। शिक्षा से बच्चों में यह भी समझने की क्षमता उजागर होती है कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत है।  शिक्षा का पहला अनुभव, बच्चा अपने घर से सीखता है। एक बच्चे के जीवन में उसका पहला विद्यालय (प्रथम पाठशाला) परिवार होता है। माता-पिता बच्चे के भविष्य को एक आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि बच्चे अपने घर में अधिक समय बिता रहे हैं, तो उनके माता-पिता को उन्हें एक स्वस्थ वातावरण देना चाहिए। एक अस्वस्थ वातावरण बच्चे के विकास में रुकावट डाल सकता है। इसलिए अपने बच्चों को शिक्षा का अभ्यास कराने के लिए, घर को एक बेहतर स्थान बनाना चाहिए।


भारतीय बच्चों के शिक्षण में उपयोग की जाने वाली पद्धतियाँ नवीन होनी चाहिए। कक्षा में बच्चों का ध्यान आकर्षित करने जैसी सबसे बड़ी चुनौती का अक्सर शिक्षक को सामना करना पड़ता है। आज की शिक्षा प्रणाली का मुख्य उद्देश्य, बच्चों के दिमाग पर शिक्षा का लंबे समय तक प्रभाव डालना है। बच्चों को घर जाने के बाद कक्षा में क्या पढ़ाया गया था, यह याद रखने में सक्षम होना चाहिए। हर बच्चे का स्वभाव भिन्न होता है और वह अलग-अलग शिक्षण तकनीक का पालन करता है। एक बार जब आप उन्हें उनकी पसंदीदा सीखने की शैली का अभ्यास कराते हैं, तो वह आपको आश्चर्यचकित करने में कभी असफल नहीं होते हैं। एक पाठ को कहानी के रूप में परिवर्तित करके बताना, बच्चों की शिक्षा के प्रति रुचि को बढ़ाएगा। कक्षा में बच्चों के साथ गायन का उपयोग करके उनके मनोभाव में वृद्धि की जा सकती है। पहेलियों और खेलों की मदद से बच्चों को अभ्यास करवाएं और उनका कक्षा में अधिक मात्रा में उपयोग करें। इसके परिणामस्वरूप वे सक्रिय रूप से ऐसी गतिविधियों में भाग लेंगे जब हम बच्चों को उनकी कक्षा से बाहर ले जाते हैं, तो वे बहुत उत्सुकतापूर्वक चीजों को सीखते और याद करते हैं। इसलिए शिक्षा की प्रासंगिकता के लिए क्षेत्रीय भ्रमण का आयोजन करें। एक बड़े छात्र को शिक्षित करने की तुलना में एक छोटे बच्चे को शिक्षित करना एक बहुत कठिन कार्य होता है।


यह बच्चों में चीजों को समझने और उनकी व्याख्या करने तथा उन्हें सही दिशा देने के लिए महत्वपूर्ण है। यदि बच्चे शिक्षा की उचित पद्धतियों का अनुसरण करने में कामयाब नहीं होते हैं, तो वे बहुत जल्द शिक्षा के प्रति अपनी रुचि को खो देते हैं। स्मार्ट लर्निंग मनोरंजन तथा शिक्षा का मिश्रण है। यह पद्धति न केवल  कक्षाओं को सुव्यवस्थित करती है, बल्कि यह अभ्यास कराने में बच्चों की रुचि का भी विकास करती है। इसमें ऑडियो और वीडियो उपकरण का संयोजन शामिल है, जो बच्चों में अभ्यास की जिज्ञासा को बढ़ाने के लिए प्रभावी ढंग से उपयोग किए जाते हैं। खेल, खिलौने, पॉडकास्ट, फिल्म और टेलीविजन आदि जैसे उपकरणों का उपयोग शिक्षण सत्र में काफी काम करता है।स्मार्ट लर्निंग आज के कई स्कूलों द्वारा अपनाई जाने वाली एक प्रचलित पद्धति बन गई है। इस अभ्यास के उद्भव के बाद ब्लैकबोर्ड की अवधारणा अपना अस्तित्व खो रही है और जब बच्चों की बात आती है, तो उनके लिए अवकाश शिक्षा की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण होता है। जब बच्चे इसे पसंद करने लगते हैं, तो उनके लिए यह स्मार्ट लर्निंग की पद्धति काफी मजेदार हो जाती है।


बाल निरक्षरता के पीछे के प्रमुख कारणों में वित्तीय संकट भी शामिल है, क्योंकि देश की ज्यादातर जनसंख्या गरीबी स्तर से नीचे जीवन यापन कर रही है, इसलिए वे अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजने तथा वहाँ आने वाले खर्च को वहन नहीं कर पाते हैं। गाँवों और पिछड़े क्षेत्रों में, सरकार द्वारा चलाए जाने वाले विद्यालयों में व्यापक निरक्षरता के परिणाम कम दिखाई पड़ते हैं। जब माता-पिता के पास घर का खर्च चलाने के लिए कोई विकल्प नहीं बचता है, तो वह परिवार की आजीविका के लिए बच्चों को काम करने के लिए भेज देते हैं। प्रत्येक बच्चे को स्कूल जाना चाहिए, क्योंकि प्रत्येक के पास शिक्षा का समान अधिकार है। किसी भी देश का विकास और समृद्धि वहाँ के नागरिक को बचपन से प्राप्त शिक्षा की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। प्रत्येक बच्चा अपने आप में खास अर्थात् हर बच्चे में कोई न कोई खूबी मौजूद होती है। इसलिए हमें बच्चों की कार्यक्षमता की पहचान करनी चाहिए और उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन करवाना चाहिए। आखिरकार, आज के बच्चे कल का भविष्य होगें।